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ग़ज़ल
वो कहीं था, कहीं बताया गया।
उम्र भर हमको बरगलाया गया।
झूठ बचपन से ही सिखाया गया।
सच किताबों में ही पढ़ाया गया।
वक़्त की ठोकरें लगी जिसको,
वो किसी से न फ़िर उठाया गया।
फंस गये उसमें तो निकल न सके,
जाल दुनिया में वो बिछाया गया।
ढल गये दिन ये पता होने लगा,
जब हमें छोड़ अपना साया गया।
शख़्स जो कहकहे लगाता था,
अपने घर में उदास पाया गया।
जब गया इस जहान से कोई,
इक कफ़न ही लिबास पाया गया।
© इन्दु
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