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एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त एक दास्तान।।
वैशया शेखर बाबू को एक बस्ती से लेकर गुजरने लगी ! बस्ती में चारों ओर से मटन मच्छी
की बदबू आ रही थी , जैसे यहां सब क़साई रहते हो! शेखर बाबू कभी पीछे देखते तो कभी आगे चलते चलते रूक जाते,मन ही यही डर सता रहा था कहीं ये औरत किसी लुटेरों के गिरोह की साथी तो नहीं ? जो मुझे अपनी बातों के जाल में फंसा कर यहां लेकर आई है ? कहीं ये मुझे जान से तो नहीं मार देगी ? शेखर बाबू का दिल जोर जोर से धड़कने और कांपने लगा था ! शेखर वहीं रुक कर सोचने लगा , क्या ये औरत सच्च कह रही है ? क्या ये सच्च में वैशया है ? हां वस्त्रों और बातों से तो वैशया ही लग रही है ! नहीं यह इसका छलावा भी हो सकता है ? क्या मुझे वापिस चले जाना चाहिए ? अगर ये औरत सच बोल रही है तो अगर मैं वापिस चला गया तो अगर कोई चोर लुटेरा मिल गया तो मैं क्या करूंगा ? नहीं नहीं इस से अच्छा तो मैं इस औरत के साथ चल पढूं ! अगर ये औरत या इसके साथी मुझे मारने कि कोशिश करने लगे
तो मैं अपने सारे रुपए देकर अपनी जान भीख मे मांग लूंगा।।
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