...

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समय की अस्थियों से
#ज्ञानकीफुसफुसाहट

एक पहचान,
जो सदियों से चलती आ रही है,
हाड़ मांस की,
देह में मलते राख की,
चिता के जल रहे अंगारो में,
आदम के इच्छाओ की लपटे,
उफान मारती है,
जिस्म मर जाता है,
पर रूह जलती रहती है,
आसमान रंग बदलता है,
और उससे निभाये गये उसूलो में से,
आधी बिछी गैरत,
गिरगिट की तरह रंग बदल जाती है,
जो अब,
आसमां से भी मेल नहीं खाती,
दृढ़ निश्चय के पिटारे,
जो कामनाओ के वस मे थे,
खुल के अस्थियों में बह जाते हैं,
पर बहा हुआ,
ख़तम नहीं होता,
मेल खाता है और,
पुनर्जन्म लेता है,
परिवर्तन से अपने कतरे सींचता है,
और उठ खड़ा होता है,
कालचक्र से निकला सागर में,
वक्त की काली जंजीरो से,
मन में दबे भूचालो से,
नैनो से बहते अश्रु से,
वो जन्म ले रहा,
वो आ रहा,
और आता रहेगा,
बाधाओ को पार कर,
चिता के नियमो को,
बदलता रहेगा....
© --Amrita