...

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जालसाजी
कुछ बदले से मौसम सुहाने,इनकार करती नजरें, शाम का सन्नाटा और तंगहाल जिदंगी ,तू बेखर है या तेरी नजरअंदाजी है

मैं खुद को साँचे में ढालकर दिल लाया हूँ या तो फेंक दूँ या कर दूँ फिर से तेरे हवाले, तू इतना भी सख्त दिल तो नहीं हुआ करता था, यह कौनसे तीर है कौनसी तीरंदाजी है।

मुझे तिलिस्म नहीं मुहब्बत आती है,तू समझ यह काफ़ी है तेरा गुजारा करने को,चेहरा नूरानी,चश्म प्यार के थे, अब यह कौनसा खेल है, कैसी कलाबाजी है


मेरे दोस्त बोलते हैं मुझे यह मुहब्बत नहीं ,फरेब है, क्या उनका गुमाँ सही, या उनकी बात सही, कोई उजाला ही नहीं अब इस शहर में "मोईन' यह कौनसी जालसाजी है।।

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