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साहस की बात
लाख परेशानियों से घिरी हुई, सामाजिक बेड़ियों में कसी हुई
चली जो जीवन भर के वनवास पर बड़े ही साहस की बात थी
देहरी लांघ घर से कदम बाहर निकालना कभी आसान न था
सोच रही थी खड़ी, कैसे हिम्मत करे, बहुत मुश्किल घड़ी थी

कभी घर की तरफ देखती तो कभी बेटे की तरफ देखती थी
अपना घर छोड़ना आसान नहीं होता, मगर वो करने चली थी
सामने कोई राह ना छोड़ी थी, हमसफर ने कसम तोड़ दी थी
भटकने को बेघरों की तरह, निकल जाने की सज़ा सुना दी थी

क्या करती रह कर वहाँ, छोड़ पिया का घर जाने को मजबूर थी
बढ़ रहे थे अत्याचार उसके, किसी तरह बच्चे को बचा सकी थी
अब ये राह खुदा ने उसे दिखाई थी, बमुश्किल जान बचा पायी थी
साहस करके कदम निकाल, जीवन का वनवास काटने चली थी

जाने कितनी ही ऐसी अबला मजबूर, चढ़ रही बलि बिन बात ही
ऐसा जीना भी क्या जीना, खुल कर जियो जब तक तन में सांस हैं
मोहताज नहीं थी वो, बहुत हिम्मती साहस की बात कर चली थी
ठुकरा कर नारकीय जीवन, बेटे संग कल को फिर जीने चली थी

© सुधा सिंह 💐💐