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बचपन का एहसास
#स्मृति_कविता
बचपन का वो अनोखा सा दृश्य जो आखों को याद आया,
वो जब छोटी श्रेया एक प्यारी गुड़िया को खिलाया करती थी ,
वो गुडिया को अपनी खुशी लुटाया करती थी,
याद है वो अकेलापन का सुकून,
अनजान सा होने का एहसास पाया करती थी
लौटा दो मुझे वो बचपन जिसमें मैं खिलखिला कर हसा करती थी,
वो माँ का प्यार जो अपने हाथो से मुझे खिलाया करती थी,
पहले मार कर फिर मरहम भी खुद लगाया करती थी,
अब वो सब खो चुका है,
ना अब वो माँ पहले जैसे रहीं और ना मैं,
शायद कुछ पल का आनंद था
वो पल अब फिर ना आना था |
© nishu••☆☆
बचपन का वो अनोखा सा दृश्य जो आखों को याद आया,
वो जब छोटी श्रेया एक प्यारी गुड़िया को खिलाया करती थी ,
वो गुडिया को अपनी खुशी लुटाया करती थी,
याद है वो अकेलापन का सुकून,
अनजान सा होने का एहसास पाया करती थी
लौटा दो मुझे वो बचपन जिसमें मैं खिलखिला कर हसा करती थी,
वो माँ का प्यार जो अपने हाथो से मुझे खिलाया करती थी,
पहले मार कर फिर मरहम भी खुद लगाया करती थी,
अब वो सब खो चुका है,
ना अब वो माँ पहले जैसे रहीं और ना मैं,
शायद कुछ पल का आनंद था
वो पल अब फिर ना आना था |
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