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रायसी आतंकी आक्रमण
छोड़कर अपने घरों को ।
और अपने काम सारे ।
चल दिए ,बहुजन बहुत ।
मां वैष्णो के धाम सारे ।
थे मगन मन में बहुत ।
होगा मिलन माता से अब ।
पर क्या पता था राह में ।
मृत्यु खड़ी नव वेश में।
हादसा या कोई घटना ,कह नहीं सकते हो तुम ।
ये सोचकर रची गई साजिश का सारा खेल था ।
ना खेल है बच्चो का यह ।
ना ही कोई विपदा नई ।
यह उन्ही मजहब वालो की सोच है ।
जो पल रही घर में कहीं ।
संविधान पढ़कर सब कहते सब समानता अपनाओ जी ।
हिंदू , मुस्लिम , सिक्ख, ईसाई ,सब भाईचारा निभाओ जी ।
जो मजहब की खातिर बच्चो के सर कटवा रहे ।
तुम उनसे ही भाईचारा निभा रहे ।
वो मासूमों के रक्त से , निज देह अपनी रंगा रहे ।
इसी तरह कितने लाखो पंडित काश्मीर , से भगा दिए ।।
मजहब नहीं बदला तो , बिन मौत के वो मार दिए
तुम कितने ही घर पाट सको ।
उतनी ही ट्रेनें नाओखली के दंगो में ,लाशो से भर कर आई थी ।
फिर भी गांधी ने हमको अहिंसा की सीख सिखाए थी ।
बस हमारी तमाम गलतियों का हरजाना ,जान देकर भरा गया ।
इस लिए तो हर बार हिंदू ही, और बस हिंदू ही ठगा गया ।।










© viरु