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जनतात्रिक
जिस बस्ती मे मै इनदिनों
आकर रहने लगा हू बड़ी अजीब हैँ इसकी दास्ताँ ...
यहां हर झोपड़ी की बनावट एक सी हैँ. यहाँ रहने वालों के परिधान एक जैसे फ़टे पुराने है... कोई भी यहां एक दूसरे के लिए अजनबी
नहीं है .. और तो और यहां संबके दर्द और गम भी एक जैसे ही है. कोई भी किसी से न छोटा है न बड़ा है अर्थात सब कोई यहां जनतान्त्रिक पध्यती पर जीवन जी रहा है
आकर रहने लगा हू बड़ी अजीब हैँ इसकी दास्ताँ ...
यहां हर झोपड़ी की बनावट एक सी हैँ. यहाँ रहने वालों के परिधान एक जैसे फ़टे पुराने है... कोई भी यहां एक दूसरे के लिए अजनबी
नहीं है .. और तो और यहां संबके दर्द और गम भी एक जैसे ही है. कोई भी किसी से न छोटा है न बड़ा है अर्थात सब कोई यहां जनतान्त्रिक पध्यती पर जीवन जी रहा है
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