...

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लक्ष्मण की उर्मिला
आसान नहीं होता है जग में
लक्ष्मण की उर्मिला हो जाना
सारे जग से तोड़ के नाता
प्रियतम में ही खो जाना

सिया जैसा नहीं त्याग अगर
तो सिया से कम भी कहाँ था
सीता संग प्रति क्षण रघुवर के
पिय वियोग उर्मिल ने सहा था
होता नहीं आसान जगत में
विरह हलाहल पी जाना
बिसरा कर सब जन जग को
नींद पिया की सो जाना

पति सेवा में वो लीन हुईं
तन मन से भी क्षीण हुईं
तिय धर्म का प्रण जो लिया
सहज विरह स्वीकार किया
स्वामी!जाओ वन भूमि को
प्रभु भक्ति में तुम खो जाना
है तुम्हें शपथ मेरी प्रियवर !
मेरा विचार न हिय में लाना

चौदह बरस रघुवर सेवा में
लखनलाल जब खोये थे
क्षण एक के लिए भी
लक्ष्मण नहीं कभी भी सोये थे
भ्रात प्रेम की अतुल परिभाषा
अब कठिन है दूजी बन पाना
यह त्याग बना है पर्याय प्रेम का
देखो यह प्रण तुम न भूल जाना

अवधपुरी प्रभु के बिन जब
बड़ी अधीर सी हो रही थी
नारी एक तपस्या में थी
चौदह बरस से सो रही थी
धन्य थी वो भारत की नारी
कोटि कोटि सबने माना
आसान नहीं होता है जग में
लक्ष्मण की उर्मिला हो जाना।
जय श्री राम जय माता दी 🙏