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यह प्रतिशोध है जुबान का भाग-३
यह प्रतिशोध है जुबान का,
शाछी है कलम एवं कविता कू शबदचित्र ,
यह आलोचना इसकी कोई उड़ान नहीं,
ना इसकी अपनी है कोई पहचान बनावटी और
ना हैं कोई रूप रंग मगर फिर भी वाह है,
कुदरत कीर्ति जो इसके अलावा और कहीं नहीं पहुंचती ।
पंख नहीं है -
और बदल सकती हूं दुनिया विचारों से,
और वही बदल सकती तकदीर कर्म से।
यह प्रतिशोध वहीं गुलामी है,
जो आज भी कहीं ना कहीं पर्दानशी है।
#परतिशोध
© All Rights Reserved
शाछी है कलम एवं कविता कू शबदचित्र ,
यह आलोचना इसकी कोई उड़ान नहीं,
ना इसकी अपनी है कोई पहचान बनावटी और
ना हैं कोई रूप रंग मगर फिर भी वाह है,
कुदरत कीर्ति जो इसके अलावा और कहीं नहीं पहुंचती ।
पंख नहीं है -
और बदल सकती हूं दुनिया विचारों से,
और वही बदल सकती तकदीर कर्म से।
यह प्रतिशोध वहीं गुलामी है,
जो आज भी कहीं ना कहीं पर्दानशी है।
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