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' इंसान बदल रहा है '
ज़माने की इस भीड़ में,
इंसान बिखर रहा है,
अब इंसान, इंसान नहीं,
वो बदल रहा है l
छीन झपत कर खाना,
ग़ालियों से भरा ज़माना,
इंसान अपने स्वार्थ में अंधा हो रहा है l
अब इंसान, इंसान नहीं,
वो बदल रहा है l
कहीं प्यार के नाम पर,
तो कहीं संपत्ति व इज़्ज़त के नाम पर,
अपना ही अपनों का दुश्मन बन रहा है l
अब इंसान, इंसान नहीं,
वो बदल रहा है l
ज़रा ज़रा सी बातों पर,
हर कोई झगड़ रहा है,
इंसानों में अहंकार और गुस्सा
कुछ इस कदर बढ़ रहा है l
अब इंसान, इंसान नहीं,
वो बदल रहा है l
मिट्टी के बने इस शरीर पर,
वो कितना अकड़ रहा है,
खुद को महान दिखाने के लिए,
वो कितना गलत कर रहा है l
अब इंसान, इंसान नहीं,
वो बदल रहा है l
भरोसा करो मेरा,
ये कहकर वो कितनों को लूट रहा है,
अच्छाई को भुलाकर,
वो बुराई का साथ दे रहा है l
अब इंसान, इंसान नहीं,
वो बदल रहा है l
धन्यवाद l
© Shubham Agarwal
इंसान बिखर रहा है,
अब इंसान, इंसान नहीं,
वो बदल रहा है l
छीन झपत कर खाना,
ग़ालियों से भरा ज़माना,
इंसान अपने स्वार्थ में अंधा हो रहा है l
अब इंसान, इंसान नहीं,
वो बदल रहा है l
कहीं प्यार के नाम पर,
तो कहीं संपत्ति व इज़्ज़त के नाम पर,
अपना ही अपनों का दुश्मन बन रहा है l
अब इंसान, इंसान नहीं,
वो बदल रहा है l
ज़रा ज़रा सी बातों पर,
हर कोई झगड़ रहा है,
इंसानों में अहंकार और गुस्सा
कुछ इस कदर बढ़ रहा है l
अब इंसान, इंसान नहीं,
वो बदल रहा है l
मिट्टी के बने इस शरीर पर,
वो कितना अकड़ रहा है,
खुद को महान दिखाने के लिए,
वो कितना गलत कर रहा है l
अब इंसान, इंसान नहीं,
वो बदल रहा है l
भरोसा करो मेरा,
ये कहकर वो कितनों को लूट रहा है,
अच्छाई को भुलाकर,
वो बुराई का साथ दे रहा है l
अब इंसान, इंसान नहीं,
वो बदल रहा है l
धन्यवाद l
© Shubham Agarwal
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