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gazal
नाजुक गजल भी बाजार में, बाजारू हो जानी थी।
राह कलम की भी पेट से होकर जानी थी।।
इत्तेफाक नहीं था, तेरे दुपट्टे का गिर जाना।
सारी शिद्दत से मैंने, नजरें तुझ पर तानी थी।।
मैं लिखता रहा शायरी सिगरटें पीते पीते।
चाय की चुस्कीयों मै उसने, पढ़नी मेरी कहानी थी।।
बेअमल काटी जिंदगी, जिस्म सहेज कर रखा।
जवानी में वर्जिसें कर बैठा था, अब हड्डियां दुखानी थी।।
सब तेरे जैसे मिले, रजनीश तुझे तेरी जिंदगी में।
किस्मत ने तुझे , बर्बाद करने की हि ठानी थी।।
रजनीश
© rajnish suyal
राह कलम की भी पेट से होकर जानी थी।।
इत्तेफाक नहीं था, तेरे दुपट्टे का गिर जाना।
सारी शिद्दत से मैंने, नजरें तुझ पर तानी थी।।
मैं लिखता रहा शायरी सिगरटें पीते पीते।
चाय की चुस्कीयों मै उसने, पढ़नी मेरी कहानी थी।।
बेअमल काटी जिंदगी, जिस्म सहेज कर रखा।
जवानी में वर्जिसें कर बैठा था, अब हड्डियां दुखानी थी।।
सब तेरे जैसे मिले, रजनीश तुझे तेरी जिंदगी में।
किस्मत ने तुझे , बर्बाद करने की हि ठानी थी।।
रजनीश
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