...

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मीराबाई
लोकलाज कुल की मर्यादा,
कृष्ण प्रेम में सब कुछ त्यागा
पी गई मीरा विष का प्याला
सर्पों को चन्दन कर डाला

प्रेम दिवानी मीरा दरस दीवानी मीरा
कृष्ण प्रेम में जोगन हो गई
रो रो कर बावरिया हो गई
कृष्ण बिना नहीं कोई और सहाई

बालपन में की गिरधर संग मिताई
जो जीवन भर छूटे नाहिं
कैसे लगन लगे पराई
हर्ष विषाद व्यापे नाहिं गिरधर में ही समाईं
© सरिता अग्रवाल

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