...

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आपकी आँखें
आपकी आँखें कुछ कहती हैं।
ना जाने क्या कहती हैं?
शायद कोई गहरा घाव दिखाती हैं,
जो कभी न भर सका,
जिनके निशान अभी मौजूद हों।
या शायद कोई बरसों पुराना किस्सा सुनाती हैं,
किस्सा जिसमें ग़म भी था,
और जिसमें खुशियाँ भी थीं।
या शायद यह अपना हाल सुनाना चाहती हैं,
पर सुना नहीं पातीं।
बल्कि जो बात लफ़्ज़ों से होनी चाहिए थी,
वो आँखों से गंगा बनकर बह जाती है।
पर कुछ तो है उन आँखों में,
जो चीख-चीख कर कुछ कहना चाहती हैं,
जिन्हें शायद मैं भी न पढ़ पाऊँ।
ऐसी इन दो गहरी आँखों को मेरा सलाम।
आपकी आँखों को मेरा सलाम।

© Shreya N.B.