...

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रिश्ता
मेरी आदते अलग है काफ़ी...
फिर भी तू मुझसे कदम मिला लेती है...

मैं रूठ जाता हूं जो कभी
तुझे आता नहीं मनाना फिर भी तू मना लेती है...

रस्मों रिवाजो से परे है
फिर भी मोहब्बत की रस्म निभा लेती है...

मैं बन्द कर लूं आंखे जो बैठे बैठे ही
बाहों में अक्सर तू सुला लेती है...

बेवजह सी ज़िन्दगी में
अक्सर...
वजह जीने की बता देती है

कई बार तोड़ने की कोशिश करता हूं
हर बार तू रिश्ता बना लेती है...
© ✍️MR