...

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जीवन मरण
वादा तो हर कोई करता है, साथ निभाने का,
शादी से पहले,
वह चाहे आपका भाई हो, बहन हो, या माता-पिता।
शादी के बाद,
वह चाहे अब आपका साजन हो,
लगता है कोई साथ निभाता है?
नहीं, नहीं, कतई नहीं‌।
या आपके साथ बैठे आपके रिश्तेदार या मित्रगण हो,
फिर इतराते हो किस पर?
जब साथ ही ना देता हो कोई?
यह सब रिश्ते तो सब दिखावे मात्र हैं।
सच्चा रिश्ता तो इस कायनात के ईश्वर से है,
जो जन्म-जन्मांतरों तक देता है साथ आपका।
उस परमात्मा के मिलन से है,
उसे दिव्य शक्ति में सराबोर होने से है,
जिसके मिलन से,
तेरा जीवन सफल हो जाएगा।
वरना तो इस जीवन में तो
सिर्फ धोखा, दगाबाजी एवं बेईमानी,
तो लोगों के नस-नस में कूट-कूट कर भरी हुई है।
किस-किस के साथ एवं किस-किस से लड़ोगे?
लड़ते लड़ते,
टूट जाओगे ,बिखर कर।
तुम्हारी ईमानदारी, सादगी,
का ऐसे लोगों पर,
कुछ असर नहीं होगा।
कहते हैं ना,
अकेला चना क्या भाड़ फोड़ेगा?
आने वाली पीढ़ी तो,
और एक कदम आगे है।
मिनटों में तुम्हें बेवकूफ बनाकर,
तुम्हें ही बेचकर खा जाएँगे।
इन सबसे अगर तुम्हें बचना हो,
तो एकमात्र सहारा,
सिर्फ परवरदिगार है,
जो तुम्हें हर कष्टों से बचाएगा।
अगर तुम पर कृपा हो उस,
परवरदिगार की।
तो तुम सामना कर सकते हो,
हर कष्टों, मुश्किलों एवं परेशानियों से,
अन्यथा फँसे रहोगे,
इस जीवन मरण के चक्र में।
‌ डॉ अनीता शरण।