...

18 views

अब आगे

© Nand Gopal Agnihotri
कल रात एक सपना देखा,
सपने में फिर सपना देखा।
दूजे सपने में कुछ दम था,
पहला तो केवल सपना था।
पहले देखा -
है प्रकृति सुहावन मनभावन,
यथा समय सारी ऋतुएं
रिमझिम बूंद झरे सावन।
निर्मल नदियां कल-कल बहतीं,
प्रदूषण मुक्त हवा चलती।
कहीं रोग-शोक का नाम नहीं,
मानव-मानव में बैर नहीं।
सबतर खुशहाली छाई है,
धरती ने ली अंगड़ाई है।
नर पशु पक्षी जलचर सब,
सब प्रेम प्यार से रहते अब।
ये दुनिया बदल गई सारी,
महक उठी मन की फुलवारी।
इतने में तन्द्रा टूटी
फिर देखा एक और सपना,
मन डर से सहम गया अपना।
फिर देखा -
अब होगा परमाणु युद्ध,
और प्रकृति भी होगी विरुद्ध।
बरसेगी आग धरातल पे,
जल जाएगा धू-धू कर के।
कुछ बचे-खुचे जीव होंगे,
यंत्र चलित मानव होंगे।
ना कोई रिश्ता होगा,
ना ही मानवता होगी।
विज्ञान चरम पर जा पहुंचा,
मानव विवेक अब खो बैठा।
इसका विनाश अब निश्चित है,
फिर नव सृजन सुनिश्चित है।