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तेरा अहंकार तेरा नाशक था ❤️
(माता सीता और रावण सांवाद)

महान विद्वान तु रावण था
मुँह से ओंकार जापता था,
तेरी एक क्रोध से
सारा राक्षस नगरी कापता था

माना मैंने तु भी महादेव का उपासक था,
तूने कमी मुझ में निकाल दी
तेरा अहंकार हि तेरा नाशक था

एक नारी की जिद पर तूने
एक नारी का अपमान किया,
अरे मूर्ख भूल गया जब मैंने तुझे अपने समीप आने भी नहीं दिया था
फिर तु मुझे चुरा कर लाया और खुद पर कैसे मान किया

एक निर्बल स्त्री को उठा लाना
कहा की पराक्रम समझता है ,
एक स्त्री का अपमान करके
खुद को बलशाली कहता हैं

बहन की जिद पुरी करना चाहा तूने
किसी अनजान पुरुष के प्यार के लिए,
मेरा 100 100 धिक्कार है
तेरे अनुचित संस्कार के लिए

भूल गया मुझे तेरे गलत इरादों के लिए
कभी मैने खुद को अग्नि में समाया था,
भूल गया तु वो दिन
तु मेरी और एक कदम भी न बढ़ाने पाया था

तु तो पंडित धर्म का रक्षक
महा शक्ति शाली राक्षस था,
तेरे मृत्यु पर किसी का दोष नही
तेरा अहंकार हि तेरा नाशक था