...

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पढ़ता रहा
कभी निगाहें तेरी कभी रुखसार पढ़ता रहा
मैं धूप बन जर्द बदन की बहार पढ़ता रहा

दो झीलें तेरी आंखों में लहरा के सो गईं
मेरा दिल तेरी हसरतों का अखबार पढ़ता रहा

मेरी सांसों में घुली हुई है तेरी खुशबू फिर भी
मैं ये खुशबू भी होकर तलबगार पढ़ता रहा

कहीं चूम न ले चांद ये मेरी मुहब्बत की जमीं
मैं आयत ए दिल भी हर रात एक बार पढ़ता रहा

तबर्रुके हयात कह के तुझे पलकों पे रखा है
मैं हर कतरा ख्वाब भी हो बेकरार पढ़ता रहा

न छू पाईं कभी ये सिरफिरी हवा मुझको
मैं खुद को होकर खुद का राजदार पढ़ता रहा
© manish (मंज़र)