...

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आवाज़ों के जंगल में...
आज भी मुझे उसकी तड़प सुनाई देती हैं,
एक अनकही अनजाना सच बयां कर देती हैं।
आज भी ठहरा हुआ हूं उसी अंधेरी गली में,
आज भी जी रहा हूं मैं उसी गुमनाम पल में।
निकलने के मंसूबे तय हुए हज़ारों बार ज़हन में,
पर कमबख्त ये दिल धोखा दे जाता हर बार।
अब तो यादें भी सिकुड़ रही और सांसें उखड़ रही,
धंस चला इस दलदल में मैं अनजाना कहीं।
अगर सुन सको तो सुना मेरी सदा,
खोना नहीं मुझे बन एक आवाज़ इस जंगल में।।

#anirwanchandradutta
#by_devils_pen

© Trance Rudra