...

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बरबाद।
मैं किस तरह हो रहा हूं बर्बाद मुझे कुछ ख़बर नहीं,
ख़बर है बस इतनी सी के किसी को मेरी ख़बर नहीं।

यह फुल यह गुलिस्तां शौक़ थे जिसके वह लापता हैं,
भंवरा कर गया सब बर्बाद बागबान को कुछ ख़बर नहीं।

जिस किसी गम में चुना था उसने मैखाना शराब का,
शराब बहां ले गई सब कुछ परिंदे को उड़ने की ख़बर नहीं।

अब तो आ जाओ कर लो तुम दीदार मेरा जान ए मन,
जब से तुम रुखसत हुए हो हमें वक्त की भी ख़बर नहीं।

तुम थे तब बहारें थी,मौसम करते थे सजदे मुझे अब,
तुम रुठी,सितम यह हुआ बहारों,मौसम की ख़बर नहीं।

मिलो किसी मोड़ पर तो देखकर जान जाओगे हालत मेरी,
लोग कहते हैं मैं बरबाद हूं,बाकी मुझको मेरी ख़बर नहीं।
© वि.र.तारकर.