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कहाँ खोजूँ: बचपन
मंच से जुड़े सभी रचनाकारों को मेरा प्रणाम,
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ज़माने बाद आई हूँ, मैं तुझसे रू~ब~रू होने,
धुंधले से हैं सब मंजर, लगे हैं रास्ते खोने।।

नहीं कोई निशां बाकी, जो थे मेरे ख्यालों में,
निकल आई मेरे बचपन, तेरी मैं आज टोह लेने।।

न दादी की कहानी थी, न राजा था, न रानी थी,
कहीं गुम हो गई शायद, वो चाबी उस ख़ज़ाने की।। हैं अनजान से चेहरे, नए सब दर~ओ~दीवारें।
नहीं जुटती है अब हिम्मत, किसी पर हक़ जमाने की।।

मेरे मासूम से बचपन, कहाँ खोया है जाने तू,
हुई सब कोशिशें नाकाम, तुझको फिर से पाने की।।

कहाँ खोजूँ मैं पहचाने हुए से वो हँसी मंज़र,
नहीं दिखती निशानी अब कोई गुजरे ज़माने की।।

स्वरचित मौलिक रचना,
रंजीत `एक प्रयास'✍️📖,© All Rights Reserved