...

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ए जिंदगी।
ए जिंदगी एक नई ख्वाइस मरने की
मैं रोज घर से लेकर निकलता हूं।

मन सा भर गया है मेरा तुझ से।
अब मै यहां से चला जाऊ तो अच्छा हो।

इस जहां से उस जहा की ओर।
किसी भी चीज में अब मन नहीं लगता है।

ना रास आती है अब खुशियां।
हर तरफ बस गमों का बसेरा है।

खुद का खुदी से अब मन भर गया है।
जी सा उठा करता हैं दिन में सौ दफा।

जाने ऐसा क्या हो गया है।
हलक से जान जाने कब निकल
बाहर आ जाए,
यू हाल बुरा हो गया है।

खैर गम मरने का नहीं।
जिंदगी जीने का हमेशा रहा हैं।

जिंदगी ने कभी संभाला नही
सिर्फ दर्द ओ गम ही दिए।

कभी मरहम की बात की नही।
हमेशा तकलीफे परेशानियां ही
हक में मेरे दी। कभी सुकून से
दो पल बैठकर जिंदगी ने बात नही की।

अब कोई भी तो मेरा अपना रहा नहीं
रोज सुबह सुबह मौत चोखट
पर खड़ी नजर आती हैं।

खुद को खुदी से घुटन होती हैं।
एक बंद कमरे में मै खुद को तो पाता हूं।
इतना ऊब गया हु ए जिंदगी मैं तुझ से
सोचता हु ज़िंदा क्यों हूं मैं
मैं मर क्यो नही जाता हूं।

मरने की कोशिसे करू तो भी मर नही पाता हूं।
अब खुद पर भी मेरी मरजी नहीं चलती हैं।

ऐसा लगता हैं जैसे जिंदगी
इशारों पर चल रही हों।
कठपुतली बन गई हैं जिंदगी मेरी।

मैं इस जहां से लौट जाऊं तो अच्छा हों।

जीतना तू सोचती हैं ए जिंदगी
मैं उतना भी बुरा नही हूं।
मेरा दिल ना दुखाया कर।
तेरा अपना ही हूं मै कोई गैर नही हूं।


© KRISHAN ☑️