...

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मुझे तुम पर विश्वास नहीं
आज किसी अपने ने कहा मुझसे...
"मुझे तुम पर विश्वास नहीं।"

सुनकर यह, धूमिल हो गईं संवेदनाएं कहीं,
शून्य हो गए विचार, और अश्रुओं की धारा बहीं,
कब खंडित हुआ ह्रदय, इसका अहसास भी नहीं।

तब ख़ुद से कहा मैंने, "मुझे भी किसी से आस नहीं"
"अब किसी प्रेम, किसी उम्मीद, किसी सम्मान की प्यास नहीं।"

बंद आंखों के पीछे से, तब दिल में उठी एक आवाज़...
"अरे ओ बंदे! क्यों सजाए बैठा है तू, इन झूठे रिश्तों की साज़?"

"रखना है तो रख 'उसकी' आस,
करना है तो कर 'उस' पर विश्वास"...
बिन जिसके, जीवन में संभव कोई श्वास नहीं।

"अरे! कठपुतली मात्र है तू, जीवन उद्देश्य तेरा कोई खास नहीं,
अगर उस अनंत, सर्वव्यापी, आनंदमयी ऊर्जा से मिलने का, तूने किया कोई प्रयास नहीं।"

© AK

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