...

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विडंबना
ये भी कैसी बिडंबना हैं
कि तन अनुरागी बना रहा. लेकिन मन बैरागी बन कर जीने का दिखावा कर रहा

हर रोज़ नई सुबह दे जाता हैं सूरज.
लेकिन हर रात अंधेरों से जूझ रही.. और जीवन का अंधेरा दहाड़े मार कर रौता रहा