...

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मजबुर हो गएं।
दुनियां के हकीकत से हम दूर हो गएं।
फरेबियों के बिच हम मजबुर हो गएं।

कौन जीत पाया है यहां आज तक!
बन गाया जो साधु वो मधुर हो गएं।

परिश्रम को जब गले लगाया दिल से!
मिला साथ, हम फिर कोहिनूर हो गए।

ज़रा सी वाह-वाही मुझे क्या मिली है!
हम भी न जाने कितने मग़रूर हो गएं।

कांच का दिल लिए फिरते हर जगह!
मिले पत्थर से तो चकना चूर हो गएं।

मेरी दीवानगी कहां छुपती आंखो में!
इश्क के शहर में, हम मशहूर हो गएं।

मुंबई से मोहब्बत दिल्ली से इबादत!
इन चाकरों में राजगीर से दूर हो गएं।
© महज़