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बड़ी हवेली (डायरी - 14)
कमांडर कहानी जारी रखता है "रात भर गश्त लगाने के बाद भी लुटेरा हाँथ नहीं लगा हम अपना जूनियर ऑफिसर को पोस्ट संभालने को बोला ताकि अपने बंगले का एक चक्कर लगा कर ये पता लगा सके कि क्या एमेलिया ने कोहिनूर चूरा लिया?

हम जैसे ही अपना बंगला पर पहुंचा एमेलिया भागते हुए आया और हमारे सीने से लग कर बोला "What took you so long, I waited for you whole night, my love", हम एमेलिया को सारा बात बताया कि उसका वहाँ से जाने के बाद क्या हुआ। फिर हमने उससे कोहिनूर का बारे में पूछा।

एमेलिया ने जवाब दिया "तुमको क्या लगता है ब्राड हम उस हीरा को चुरा पाया होगा, हम इंग्लैंड से इतना दूर अपना जान जोखिम में डाल कर सिर्फ तुम्हारा वास्ते ही हीरा चूरा लिया, पर तुम है कि ड्यूटी में लगा है"।

हमने एमेलिया को अपना बाहों में भर लिया और चूम लिया, फिर उससे कोहिनूर लेकर उसे अच्छी तरह से देखने लगा क्यूँकि इस एक कीमती पत्थर ने ना जाने कितने लोगों का लहू बहाया होगा, ना जाने कितने राज्यों का बीच झगड़ा कराया होगा, यह एक ब्लड स्टोन था जो उसी का शान बनता था, जो रक्त पात करने में पीछे नहीं हटता था। हमारा एक योजना तो काम कर गया था और अब किसी को शक़ भी नहीं होना था कि ये ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पास है। इसे चुराने का भी आरोप अब उस लुटेरे के ऊपर लगना था।

थोड़ा देर बाद किले से बादशाह का एक सिपाही आया और उसने बताया कि बादशाह ने फौरन याद किया है । हम अपना सीनियर के साथ बादशाह के दरबार में पहुँचा। वहां जाकर सारा हाल पता चला कि ख़ज़ाना का एक बड़ा हिस्सा लूट लिया गया था , जिसके बारे में कल रात में अच्छी तरह से पता नहीं चल पाया था, ख़ज़ाने का साथ बेशकीमती कोहिनूर भी लूट लिया गया था। बादशाह ने हमारा सीनियर को फटकार लगाते हुए कहा "ब्रिटिश कंपनी तो बड़े बड़े दावे कर रही थी कि लुटेरे को पकड़ लेगी, राज्य में अमन शान्ति रहेगी, अब क्या हुआ, कैसे हमारे उस अधूरे सपने काले ताजमहल का निर्माण होगा, बताइए है कोई जवाब, अब उन चौकियों पर मुगल सल्तनत के सिपाहियों का राज रहेगा, जब तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया की ओर से उस लुटेरे और ख़ज़ाने से संबंधित सुराग़ हाँथ नहीं लगता या लुटेरा पकड़ने की कोई कार्यवाही नहीं की जाती ", बादशाह क्रोध से आग बबूला हो गया था।

दरबार ख़त्म होने के बाद औरंगजेब ने अकेले में बुलाया फिर हमसे कहा" क्यूँ कमांडर अब तो चौकियों पर मुगल सल्तनत का सिपाही लोगों का ही राज रहेगा, मेरे पास तुम्हारे लिए एक सुझाव है अपने अधिकारियों से कहो नगर चौकसी करना और बादशाह का हिफाज़त करना उनके बस का नहीं है, मुग़ल सल्तनत के सिपाही जनता की कामज़ोरी जानते हैं, फिरंगी इसमें कुछ नहीं कर पाएंगे, ख़ैर अब जब बादशाह ने हुक्म दिया है तो अमल में लाना पड़ेगा जाइए और उस लुटेरे का पता लगाइए देखिए कोई सुराग हाँथ लगता है या नहीं "।

हम थोड़ा देर का वास्ते एक गहरा सोच में पड़ गया क्यूँकि औरंगजेब का बातों में ताना मारने का अंदाज़ था ऐसा लग रहा था मानो वह सब जानता हो कि ख़ज़ाना कहां है या उसे किसने लूटा, फ़िर बोला " जल्द ही मिल जाएगा वो अब भी इसी नगर के आसपास ही होगा क्यूँकि नगर से निकलने के हर रास्ते पर चेक पोस्ट बैठा दिया है, जंगल के सभी मार्गों को सीज़ कर दिया गया है, नगर के सभी घरों की तलाशी का ऑर्डर दे दिया गया है, आखिर उस लुटेरे से नुकसान केवल शाही मुग़ल परिवारों को ही नहीं बल्कि ब्रिटिश कंपनी को भी है। हम अभी चलता है इस लुटेरे का निगरानी का काम और ज़ोर पर चालू करवाता है ", हम बोलकर वहाँ से सीधा अपने हेड क्वार्टर गया। सारे सिपाहियों और जूनियर स्टाफ़ को इकट्ठा कर के उस लुटेरे के बारे में जानकारी लाने को कहा, उन्हें नगर की निगरानी बढ़ाने को कहा, उन्हें ये एहसास कराया कि यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के इज़्ज़त का सवाल है, नहीं तो हर नगर में बनी चौकियों पर मुग़ल तथा अन्य सैनिको का अधिकार हो जाएगा।

मामला काफ़ी संगीन हो गया था हालांकि आज पहला ही दिन था लेकिन काफ़ी परेशान कर देने वाला था। शाम तक हेड क्वार्टर में सिपाहियों द्वारा किसी अच्छी खबर सुनाए जाने का इंतजार किया, पर कुछ भी हाँथ नहीं लगा, हम समझ गया कि इतनी आसानी से हाँथ आने वालों में से नहीं है, उसको पकड़ने का वास्ते कुछ अलग ही तरकीब लगाना पड़ेगा। नगर में निगरानी और तलाशी का काम तब तक जारी रखवाना पड़ेगा जब वह या उसके दल के सदस्यों में से एक बारे में पता नहीं चल जाता। सब कुछ सोचते विचारते और अपने सीनियर से इस पर राय मशवरा करने और हेड क्वार्टर से ड्यूटी ख़त्म करने के बाद हम सीधा अपने बंगले की तरफ़ रवाना हो गया जहाँ हुस्न परी एमेलिया हमारा इंतज़ार कर रहा था, उसे तो भारत में केवल हफ़्ते भर ही रहना था, सोचा था हंसी पल बिताएंगे पर इस लुटेरे ने सब चौपट कर दिया।

इतना सालों के बाद दो प्रेमी फिर से मिला था, लंदन में तो लगभग रोज़ मुलाकात होता रहता था। एमेलिया को हम ब्रिटिश कंपनी जॉइन करने के पहले से ही जानता था। हम लोग कभी पड़ोसी हुआ करता था, एक दूसरे के घर में आना जाना लगा रहता था, पर ज़िंदगी आगे बढ़ा हम कंपनी जॉइन किया देश विदेश घूमकर हिन्दुस्तान आ गया और एमेलिया वहीं लंदन में ही स्टेज आर्टिस्ट बन गया।

हम अपना बंगले का तरफ़ जाते समय रास्ते में ये सारा बात सोचते हुए जा रहा था कि अचानक किले से कुछ परछाईयों को घोड़े पर सवार होकर जंगल की तरफ जाते हुए देखा। ये लोग किले के गुप्त रास्ते का इस्तेमाल कर जंगल से होते हुए जा रहे थे, हम भी अपने घोड़े को उनके पीछे दौड़ा दिया, घोड़े के दौड़ लगाने का आवाज़ से उन्हें यह पता नहीं चल पाया कि हम उनका पीछा कर रहा था।

घोड़ों को सरपट दौड़ाते हुए वो लोग जंगल के काफ़ी भीतर जाकर एक सुनसान गुफा के पास रुके जहाँ पहले से ही कुछ लोग जमा थे और चारों तरफ़ मशाल जल रहा था। हम उन अज्ञात घुड़सवारों से उचित दूरी बनाकर जंगल में छुप गया जहाँ से उनपर आसानी से नज़र रखा जा सकता था। उन घुड़सवारों ने अपने चेहरों को नकाब से छुपा रखा था। उनका सरदार घोड़े से उतरकर उस गुफा के सामने खड़े अपने आदमियों से सारा हाल चाल लेता है। फिर वो धीरे से अपने चेहरे से नकाब को हटाता है।

फ़िर हम जो देखा वो मुग़ल सल्तनत के पैरों के नीचे ज़मीन खिसकाने के लिए काफ़ी था, नकाबपोश घुड़सवारों का सरदार औरंगजेब था और उस गुफा में बादशाह का लूटा हुआ ख़ज़ाना रखा गया था, जिसका हिफाज़त औरंगजेब के विशेष सैनिक दल के कुछ सिपाही कर रहे थे। वो लोग वहां काफ़ी देर रुके फिर वही घुड़सवार अपने अपने घोड़ों पर सवार होकर किले की ओर रवाना हो गए। हम थोड़ा देर वहीं रुका रहा उस इलाके और उन सिपाहियों की अच्छी तरह से जानकारी लेने के लिए। जब हम पूरी तरह से आश्वस्त हो गया कि उन गिने हुए 30 सिपाहियों के अलावा वहाँ और कोई नहीं है तब हम वहाँ से चुपचाप रवाना हो गया।

हम मन ही मन काफ़ी ख़ुश था लूटा हुआ ख़ज़ाना मिल गया था, अब उन सभी चौकियों पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया का ही अधिकार रहेगा। पर मन में यह दुविधा था कि औरंगजेब ने ख़ज़ाना लुटवाया था तो कोहिनूर के बारे में भी उसे पता होगा, बादशाह कोहिनूर का भी नाम उस लुटे ख़ज़ाने में ले रहे थे। इसका मतलब यह है कि उस लुटेरे पर ही कोहिनूर को ग़ायब करने का शक़ औरंगजेब को भी है।

पर अब बड़ा सावधानी से चाल चलने का समय है क्यूँकि हमको ये तो पता था कि औरंगजेब काला ताजमहल बनवाने के ख़िलाफ़ है इसलिए ऐसा किया था लेकिन हमको ये नहीं मालूम था कि उसके दिमाग में आगे क्या क्या योजना बन रहा था, अब जब ये पता चल गया था कि ख़ज़ाना ज़्यादा दूर नहीं गया था अभी सीमा के अंदर ही था तो अब बहुत सोच समझ कर सब करने का समय था जल्द बाज़ी में नहीं।

पहले ख़ज़ाने को इस जंगल से निकालना था फिर किसी तरह मौका पाकर इसे बादशाह के समक्ष पेश करना था उनका विश्वास जीतने के लिए और उन सभी चौकियों का ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को अधिकार दिलवाना था।

अगली सुबह हम सीधे हेड क्वार्टर गया और अपने कुछ ख़ास सैनिकों का एक लिस्ट बनाया, जो एक से बढ़कर एक सूरमा था, अब तक ख़ज़ाने का किसी को भनक तक नहीं लगने दिया था, जो कुछ भी करना था सब गोपनीय ढंग से करना था। गुफा के आसपास सैनिक दल अच्छा खासा रोशनी जला कर रहता था रात में ताकि जंगली जानवरों से भी बचे और रात में हर चीज़ अच्छा तरह से दिखाई पड़े इसलिए कुछ तीरंदाज काफ़ी थे उनका सफाया करने के वास्ते, फिर भी हम कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था इसलिए कुछ बंदूक धारियों को भी साथ में शामिल कर लिया था। तीरंदाजी से काम शांति पूर्वक हो जाता बंदूक से बेवजह शोर होता है इसलिए मेरा योजना था कि औरंगजेब के सैनिकों को रात के समय तीरंदाजों के दल का निशाना बनवाकर ख़ज़ाना लेकर वहाँ से नौ दो ग्यारह हो जाना, अगर बात हाँथ से बिगड़ती तब बंदूक धारियों का दल था संभालने का वास्ते । अब बस रात होने का इंतजार था।

रात होते ही योजना के मुताबिक तीरंदाज और बंदूक धारियों के दलों को जंगल में दूसरा दिशा से लेकर अंदर घुसा ये रास्ता लम्बा ज़रूर था लेकिन घोड़ों का वास्ते उपयुक्त था। रात में चारों तरफ़ जानवरों के रोने का आवाज़ आ रहा था हमलोग धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे ताकि घोड़ों के तेज़ दौड़ने का आवाज़ सुनकर दुश्मन सतर्क न हो जाए, कुछ ही देर बाद हमलोग गुफा के पास पहुंचे। चारों तरफ़ ख़ामोशी, ऐसा लग ही नहीं रहा था कि एक रात पहले यहाँ इतने सैनिकों का दल था। फिर भी हम लोग घोड़े से उतरकर, अंधेरे में गुफा की तरफ़ आगे बढ़ा, कुछ देर बाद एक अंग्रेज सिपाही ने एक मशाल ढूँढकर उसे अपना जेब में पड़े माचिस से जलाया, तो देखा चारों ओर मुग़ल सिपाहियों का लाश पड़ा हुआ था। वहां एक भी सिपाही ज़िन्दा नहीं बचा था, सबको मार दिया गया था, ख़ज़ाना भी वहाँ से गायब था, हमको बस एक सोने का अशर्फी उस गुफा में पड़ा हुआ मिला।

हम सबने वहाँ ज़्यादा देर रुकना मुनासिब नहीं समझा इसलिए वहां से जांच पड़ताल कर फौरन ही नगर की ओर चल दिए क्यूँकि हो सकता था कि औरंगजेब रात में एक बार चक्कर मारे। हम फौरन समझ गया था कि अब ये काम उस गुमनाम लुटेरे का था, औरंगजेब ने खुद शाही ख़ज़ाना लूटवाकर उसके हाँथ में राज कोष के ताले का चाभी रख दिया था। मेरा भी सारा मेहनत बेकार चला गया।
-Ivan Maximus




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