...

17 views

वह रात...
बात स्कूल के ज़माने की है...

उस वक़्त बिजली की बहुत परेशानी थी और सङकों का भी बहुत खास्ता हाल था. मेरे एक मित्र के यहां शादी थीं तो उसने बुलावा दिया और कहा कि उस दिन उसके घर पर ही रुक जाना क्युकी घर थोड़ा दूर था.

शादी के दिन हमने खूब मज़े किये सारे दोस्तों ने मिल कर खाया पिया. रात के 11 - 12 बज चुके थे सबलोग अपने अपने धुन में थे.
मेरे भी सारे मित्र निकल चुके थे और मेरे भी दिमाग में घर जाने की सूझी, पर घर दूर होने की वजह से और सुनसान रास्ता याद करके हिम्मत नहीं हो रहीं थीं।

मेरे घर के रास्ते मे दोनो तरफ आम के बगान थे और एक पोखर थीं जिसके बगल में दो बड़े बड़े घन पीपल के वृक्ष थे.। वहाँ के स्थानीय लोगों ने बहुत सारी कहानिया बना रखी थीं कि शाम के बाद वहां नहीं जाना चाहिए क्युकि उन वृक्षों पर आत्मा का वास है और कई बार जिन्न और चुड़ैल भी देखी गई है, और अगर उन्हें कोई परेशान कर्ता है तो वह सजा भी देते है,
जैसे पेड़ पर लटका देना पोखर मै धकेल देना, किसी जानवर का रूप ले कर हमला कर देना।

कहानियाँ तो मैंने बहुत सुनी थी पर कभी प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं किया था और करने का इरादा भी नहीं था। उस दिन विवाह के बाद मुझे सूझा क्यु ना घर चला जाऊँ और चैन की नींद सो जाऊँ, पर हिम्मत नहीं जुट रही थी। पर अधिक रात हो जाने पर बहुत नींद सताने लगी और विवाह के माहौल मै आराम नहीं मिल रहा था अंततः मैंने हिम्मत करके निश्चय किया कि घर चल कर आराम किया जाये, फिर क्या था मित्र से आज्ञा ले कर साइकल उठाया और चल दिया घर की तरफ, पक्का रास्ता पार करके जब मै पोखर के नजदीक पहुंचा तों दिल की धड़कन तेज होने लगी और सारी कहानिया एक एक करके दिमाग मै घूमने लगी। अमावस्या की रात थी इसलिये अंधकार की वजह से उतना सबकुछ साफ़ नहीं दिख रहा था बस अनुभव पर रास्ते पर बढ़ा जा रहा था। तेजी से साइकिल का पैडल मार रहा था कि जितनी जल्दी हो सके उस रास्ते को पार कर लू.
मैं उतना डरपोक नहीं था पर स्याह रात मै अकेले किसको डर नहीं लगता मैंने मन ही मन ठान लिया कि किसी तरफ नहीं देखना है चुप चाप अपने रास्ते पर ध्यान रख कर घर पहुंचना है पर जैसे ही मै उन वृक्षों के पास से पहुंचा मुझे लगा कि एक छोटा सा दिया टिम-टिम। रहा है और अचानक से मै उसे देखने से अपने आप को रोक नहीं पाया।

और मुझे लगा कि वहां वृक्ष के नीचे दो तीन लोग बैठे है और सुनसान रात मै मेरे साइकिल की आवाज से मेरे तरफ ही सब देख रहे है। परंतु उनके चेहरे साफ़ नहीं नजर आ रहे थे।
मन ही मन मैंने सोचा होगा कोई और साइकिल बढ़ाने लगा....
अचानक सामने से लगा मुझे कोई आ रहा है और उसके लाठी की ठक ठक कानो मै पडी पर वो स्पष्ट दिख नहीं पाया, मैंने सोचा घंटी बाजा दु पर लगा कि घंटी की आवाज से कहीं वो लोग का ध्यान मुझ पर ना आ जाए।
फिर मैंने सोचा होगा कोई आस पास का रहने वाला घर जा रहा होगा या शंका मिटाने निकला होगा, सारे विचार दिमाग में बिजली की तरह कौंध रहे थे और पाव बिजली की तरह चल रहे थे, और वो आवाज निकट आती जा रही थी, मुझे लगा कि बगल से साइकिल काट लूँगा पर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह एकदम सामने से चला आ रहा है और मुझसे भिड़ जाएगा।

लेकिन सामने कुछ दिख नहीं रहा था फिर अचानक से एक मनुष्य का आकार मात्र दिखाई दिया लेकिन साफ़ कुछ भी नहीं दिखा ना चेहरा ना पेर और जब मैंने उस दिए कि तरफ देखा तो लगा कि वो दिया मेरी तरफ बढ़ रहा है अब मेरे अंदर एक अजीब सा सिहरन हुई और मैंने साइकिल की रफ्तार और बढ़ाने की कोशिश की और सोचा अब जो भी आगे आएगा धक्का मार दूँगा देखा जाएगा बाद में जो होगा।
पर अचानक मुझे लगा ki वह व्यक्ति अचानक से एकदम नजदीक आ गया और मैंने उसके अंदर से उसको पार कर लिया और मैंने जब पीछे मुड़ कर देखा तो वह आकार waise ही चली जा रही थी बस फिर क्या था मेरे तो पसीने छूटने लगे और मैंने पूरी शक्ति लगा दी साइकिल भगाने मै.... पर मै जितना साइकिल भगाने की कोशिश कर रहा था ऐसा लगता था कि साइकिल बढ़ hi नहीं रही, बस फिर क्या था मैंने साइकल को कंधे पर उठाया और घर की तरफ भागने लगा वहां से घर की दूरी करीबन 700- 800 mtr की होगी।

अंततः घर पहुच कर मैंने साइकिल को चारदिवारी के ऊपर से ही फेंक दिया अंदर और खुद भी कूद गया आवाज सुन घर घरवाले उठ गए और मेरी हालत देख घबरा गए फिर मैंने सबको वो घटना बताई.। कुछ लोग ने हंस के टाल दिया कि तुम्हारा डर और वहम है कुछ ने कहा कि अब कभी भी इतनी रात को उस जगह से गुजरने की जरूरत नहीं है पर वो नज़ारा और वो रात मैं कभी नहीं भूल पाउंगा.