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एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में लेखिका संग बिताए गए पल।।
कृष्ण और वैशया सैली ।।प्रश्न १लडकी ने निम्न शैली क्यों चुनी? (लैसवी वैशया और कृष्णाननद।)
प्रश्न २लड़की और गृहक की पहली मुलाकात कैसे, कहां और कब हुई?
प्रश्न ३)उनकी प्रेम गाथा या वसना ग्रन्थ कैसे प्रारंभ हुई?
प्रश्न ४)किसे वाकई में प्रेम था और कौन सिर्फ एक मतलब में था।।
प्रश्न ५) उसके साथ रहने वाली और वैशयाओ और मुखिया को पहले और बाद उसके वहां से उसके अचानक गुमराह होने कैसा लगा ।। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एवं लेखिका ।। - श्रीकृष्ण एवं लेखिका लैशवी" रिझान रस -शैलवी रेहाइश "
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस -श्री वासुदेव।।
लेखिका द्वारा आयोजित श्रद्धांजलि अर्पित रिझान रस मुल्य विषय शैलवी एक (बाज़ारू)-मैने गवाए पिता मैं बिखर गई,देखी ये घर की मेरे बिगड़ती हालत मैं बूढ़ी बीमार मां को दो दो गुण,तीन दाना चाना और चावल चुरा देखकर निकल पड़ी कड़ी थी धूप, नहीं थी पाव में चप्पल,फटे थे कपड़े मगर मैं कड़कड़ाती चिलचिलाती धूप में निकल पड़ी थामकर बांके हाथ वो निकल पड़ी और उस समय तो वो खुद यह भी नहीं जानती कि उसका भविष्य कैसा होगा?मगर समय उसे हर की नज़र का सामना करना पड़ा था जैसे-जिस गली संजीवनी मागने जाती तो उसे अपने यहा बहाने से बुलाकर उसके साथ आपत्ति जनक कार्य करने को कहा करते -कुछ समय तक तो वो ऐसे मनु से मुह फेर दिया करती मगर एक समय ऐसा भी आया जब वो ऐसे मनु को दाना डालने लगी क्योंकि उसने क्या देखा कि यह कार्य आसन है, जो कि उसे उसकी इच्छा के अनुसार फल की प्राप्ति देगा मगर फिर रिझान रस श्रृंखला इस बारे में क्या कहती आइए देखते है।।
रिझान रस श्रृंखला प्रसारित गद्य (लैशवी से शैलवी बनने का एक रहस्य क्या रहा होगा।।)।।
रिझान श्रृंखला -मै हूं तैयार बिकने को, बस गृहक तुम ,हर छुअन से हूं गदगद अगर खिरीदने वाले तुम ,बनी मधविका मठवाली तेरे सही जग की अग्नि परीक्षा और बना लिया अपना बसेरा तेरी गली के माखन से मठ को और कहलाने लगी माधविका मठवाली मगर जब पीड़ित हुई तो तेरे पास ही क्योंकि मै एक आम से जिसमफरूह बनी सिर्फ एक बुढ़िया के लिए मुझे करना अपने आप को शर्मशार ऐसी है श्रृष्टि जहा तुमहारे भक्त भी दाने दाने के लिए तरसते हैं।।
और फिर तुमहारे प्रेम होकर भी मैं बजारू कहीं क्या तुम्हारी होना भी बाज़ारू होना क्योंकि अगर मैं जो हूं वैसे तुम ने रखा है,गरीब परिवार में जन्म लेने दिया और बाप भी तुमने छीन लिया और फिर दिया इस बुढिया की गुलामी करने में खुद को नीलाम करना पड़ा क्या यही है तुमहारी दुनिया नहीं चाहिए तुमहारा साथ और फिर भी मैं निम्न बनकर तुमहारे लिए खुद को बेचकर नीलाम करूंगी।।
सीख -सदेश और कहानी अन्त में ऐसा उसने क्या किया जो हरि विष्णु की दिवानी का परिचय पद प्राप्त हुआ और क्या यह पद एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त को समाप्त और संपन्न करता है और अगर हां तो श्रृष्टि द्वारा श्राप से वो मुक्त हो जाएगी , और यह गाथा अनन्त होकर भी एक वैशया ए सुनदरी दीवानी द्वारा संपन्न प्रिया के रूप से प्रचलन में आएगी।। क्योंकि इस गाथ का अन्त ना होकर एक लुभावना सामापन हुआ क्योंकि उस एक वैशया लड़की साछात् श्री कृष्ण की दीवानी होने का परिचय पद प्राप्त हुआ था।।
गाथा यह बता रही की कोई किसी का नहीं है सब एक दूसरे के लिए मज़बूरी और स्वार्थ में काम करते हैं ,इस गाथा में लेखिका का जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा था "मज़बूरी में"वो क्या कुछ नहीं की कितना सहा मगर टूटी नहीं थी।। कौन सी और कौन मै तो यह ना जानू मैं तो प्रेमिका बनकर तेरे साथ तेरी शैली बनकर उल्लेख होना चाहाऊ।।


लेखिका कहती है कि जब एक वैशया थी तब पेड़ और पौधों से कहा करती थीं,सूरज, चांद ,सितारे और बादल ,नैजुरल डिज़ासटर में गेद और मैदानों में गाय बैल निकला करती थी , लेखिका को प्रकृति से वास्तविक में प्रेम था ।।

इसलिए उन्होंने श्री हरि की हर एक याद को सझोकर अपने हृदय में कृषणम् स्मृतियों स्वास कवच के रूप में अपने जीवित होने का मुख्य उद्देश्य किसी इन्सान को ना बोलकर उसने श्रीकृष्ण को खोद खो सौंपकर उनके हृदय में स्थित स्थाई स्थान प्राप्त करने की चेष्टा जताई हालांकि उसकी इस इच्छा का सम्मान करते हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस -श्री वासुदेव ने उसे अपनी दिवानी के स्वारूप में स्वीकार किया और यह उसके उसकी आज तक की सबसे बड़ी पहचान थी।।
#समापन।।




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