...

0 views

काल्पनिक युद्ध
काल्पनिक युद्ध एक ऐसा युद्ध ”
जो होता तो है लेकिन,
वह युद्ध होता हुआ....
किसी को नज़र नही आता "
यह एक ऐसा युद्ध होता है,
जिसमे हमारा अपना ही मन....
हमारे ख़िलाफ़ लड़ने के लिए "
तैयार खड़ा होता है,
अपनो से छिड़ा युद्ध वक़्त के साथ...
फिर भी समाप्त हो जाता है "
लेकिन अपने आप से छिड़ा युद्ध,
वक़्त के साथ खत्म ना हुआ....
तो सब कुछ तबाह कर जाता है "
मन में जब नकारात्मक,
विचारों का सैलाब आता है....
उस समय अपने मन के साथ ही लड़ना "
बहुत मुश्किल हो जाता है,
क्योंकि शरीर से लड़ा गया युद्ध...
किसी दूसरे के द्वारा रोक लिया जाता है "
लेकिन हमारे मन में चल रहे युद्धों को,
बस हमारा अपना मन ही काबू कर पाता है...
कल्पनाओ से जब हम घिर जाते है "
चाहकर भी अपने विचारों को,
किसी दूसरे के सामने ना रख पाते है....
तब यह मन हमारे उन्हीं विचारों के साथ में "
सामने आकर बार बार हमे सताता है,
फिर हमारे ही द्वारा खोलें गए....
कल्पनाओ के बाज़ार से यह मन "
हमे हमारे ही विचार बेचता है, 
जो विचार हमे डराता है.....
हमारा मन उन्हीं नकारात्मक विचारों को "
अंदर ही अंदर दोहराता है,
उनमे कुछ भी सच तो नही होता.....
लेकिन फिर भी उन विचारों को "
झूठ मानना बहुत ही,
ज्यादा मुश्किल हो जाता है.....
नकारात्मक विचारों से उत्पन्न हुआ "
यह एक ऐसा काल्पनिक युद्ध होता है,
जो मन से शुरू होकर मन से ही खत्म होता है.....
लेकिन जब अपने ही मन के "
साथ हो रही इस जंग में
हम जीत जाते हैं,
तो एक अलग रूप में....
उभरकर हम बाहर आते है,,,,,,!!