पशुओं की इंसानों को नसीहत
*पशुओं की इंसानों को नसीहत*
जन्म लेकर मानव तुमने, खुशियाँ अनेक मनाई
सदा सुखी जीवन की, शुभकामनायें सबसे पाई
श्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों में, चुनाव किया पढ़ने का
सफलता की सीढ़ी पर, निरन्तर तुमने चढ़ने का
जीवन यापन का तुमने, मनपसंद साधन जुटाया
जैसा और जितना आये, धन तुमने बहुत कमाया
सुन्दर सा जीवन साथी, बड़े चाव से तुमने चुना
सुखमय जीवन जीने का, सपना भी मन में बुना
हासिल किया वही सामान, जो मन को लुभाया
साधन और सुविधाओं का, तुमने अम्बार लगाया
जीवन में सबकुछ पाकर भी, हो न सके सन्तुष्ट
दया भाव यूं नष्ट किया, तुम बन गये पूरे ही दुष्ट
क्रूर बन इतने कि, स्थापित कर दिये बूचड़खाने
शाकाहार छोड़ दिया, तुम सब लगे मांस पकाने
निर्दोष प्राणियों पर कितना, करते हो अत्याचार
पीड़ा हमें भी होती है, आता नहीं मन में विचार
गला काटकर जीवन लेते, निर्दोष का खून बहाते
निर्दयी होकर खुद को तुम, सभ्य इंसान कहलाते
तिल तिलकर तड़पते हैं, जब मृत्यु हमको आती
हमें बिलखता देखकर! तुझे शर्म क्यों नहीं आती
हम पशु यही दुआ करते, तुम बूचड़खाने आओ
कैसे हम मारे जाते, तुम भी मौत वैसी ही पाओ
चुन लो तुम आसान तरीका, कैसे मरना चाहोगे
गर्दन तुम्हारी चीर दें, या पानी में उबलना चाहोगे
कद्दूकस करें तुम्हारा, या चमड़ी छीलकर उतारें
बता दे जरा इंसान तुझे, कैसे मौत के घाट उतारें
याद रखना ओ मानव, मृत्यु तुझको भी आयेगी
पीड़ा हम जो झेलते, तुझसे सहन न हो पाएगी
समय रहते संभल जा, छोड़ दे करना अत्याचार
प्रकृति जो भोजन देती, कर ले उसको स्वीकार
*ऊँ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
© Bk mukesh modi
जन्म लेकर मानव तुमने, खुशियाँ अनेक मनाई
सदा सुखी जीवन की, शुभकामनायें सबसे पाई
श्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों में, चुनाव किया पढ़ने का
सफलता की सीढ़ी पर, निरन्तर तुमने चढ़ने का
जीवन यापन का तुमने, मनपसंद साधन जुटाया
जैसा और जितना आये, धन तुमने बहुत कमाया
सुन्दर सा जीवन साथी, बड़े चाव से तुमने चुना
सुखमय जीवन जीने का, सपना भी मन में बुना
हासिल किया वही सामान, जो मन को लुभाया
साधन और सुविधाओं का, तुमने अम्बार लगाया
जीवन में सबकुछ पाकर भी, हो न सके सन्तुष्ट
दया भाव यूं नष्ट किया, तुम बन गये पूरे ही दुष्ट
क्रूर बन इतने कि, स्थापित कर दिये बूचड़खाने
शाकाहार छोड़ दिया, तुम सब लगे मांस पकाने
निर्दोष प्राणियों पर कितना, करते हो अत्याचार
पीड़ा हमें भी होती है, आता नहीं मन में विचार
गला काटकर जीवन लेते, निर्दोष का खून बहाते
निर्दयी होकर खुद को तुम, सभ्य इंसान कहलाते
तिल तिलकर तड़पते हैं, जब मृत्यु हमको आती
हमें बिलखता देखकर! तुझे शर्म क्यों नहीं आती
हम पशु यही दुआ करते, तुम बूचड़खाने आओ
कैसे हम मारे जाते, तुम भी मौत वैसी ही पाओ
चुन लो तुम आसान तरीका, कैसे मरना चाहोगे
गर्दन तुम्हारी चीर दें, या पानी में उबलना चाहोगे
कद्दूकस करें तुम्हारा, या चमड़ी छीलकर उतारें
बता दे जरा इंसान तुझे, कैसे मौत के घाट उतारें
याद रखना ओ मानव, मृत्यु तुझको भी आयेगी
पीड़ा हम जो झेलते, तुझसे सहन न हो पाएगी
समय रहते संभल जा, छोड़ दे करना अत्याचार
प्रकृति जो भोजन देती, कर ले उसको स्वीकार
*ऊँ शांति*
*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
© Bk mukesh modi
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