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ज़बान तले ज़हर का मिज़ाज रखतें हैं......✍🏻
जो लोग मिट्ठे अल्फ़ाज़ों का ताज रखतें हैं
वहीं ज़बान तले ज़हर का मिज़ाज रखतें हैं
झूठे मूठे लफ़्ज़ों का ज़िक्र लबों पे कुछ यूं हैं
यहीं लोग एक तरफ़ा रिश्ते का समाज रखतें हैं

ना जाने कितने मतलब के तमाशे मशहूर है
आखिर क्यों सब ज़बान पे एहतिजाज रखतें हैं
ज़हर के क़िरदारों को मुस्कुराते चेहरे पे छुपाएं हैं
क्यों सब फ़िक्र का झूठा ख़ुश्क-मिज़ाज रखतें हैं

यहां किसके फ़साने और किसके अफ़सानें हैं
वहीं ज़बान तले ज़हर का तेज़-मिज़ाज रखतें हैं
उसके हाल-ए-दिल सब कुछ बयां कर जाते हैं
जो लोग सबके नजदिकियों का इलाज रखतें हैं

आज बदलते रिश्तों की परिभाषा कुछ इस तरह है
लबों पे फ़िक्र के अल्फ़ाजों का काम-काज रखतें हैं
ना जाने कितने अल्फ़ाजों की कहानी समेटे हुए हैं
यहीं लोग चारों तरफ बस ज़हर का रिवाज रखतें हैं

ये ज़बान भी वक़्त को देखकर अल्फ़ाज़ पलटती हैं
अपनों की हर इक ख़बर से दुरुश्त-मिज़ाज रखतें हैं
ताने-बाने से आज फिर रिश्तों पे शब्दों का प्रहार है
क्योंकि सब ज़बान तले ज़हर का मिज़ाज रखतें हैं

{एहतिजाज :- तर्क-वितर्क,
ख़ुश्क-मिज़ाज :- वो व्यक्ति जिसका व्यवहार बिलकुल सादा , तेज़-मिज़ाज :- उग्र स्वभाववाला,
दुरुश्त-मिज़ाज :- बुरा स्वभाव }

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes