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हिरनी जैसी आंखें उसकी ,,,,,,,,
हिरनी जैसी आंखें उसकी
चिता जैसी चाल है
वह दिखती क्या
जब पहनकर निकलती सुट सलवार है

नाक में उसकी नथुनी नहीं
फिरभी उसकी चेहरा बेमिसाल है
क्या सोभती उस पर
जब धारण करती वह चमकती हार है

मध्यम आकार की जुल्फे उसकी
हाइट क्या कमाल है
वह गोरी इस धरा के लिए
लगती मुझे देवियों कि उपहार है

न पहनती वह सैंडिल
न तो उस पर लीपा पोती की जाल है
ईश्वरीय रूप लिए वह
जैसे लक्ष्मी कि अवतार है

भौवें उसकी काली काली
क्या गोरी उसकी गाल है
माथे पर सुशोभित
टिकली बिंदी कमाल है

मस्त मगन रहती वह
चलती सारस जैसी चाल है
आंख कि धोखा या
सच में वह इतनी सुंदर सिंगार है

जिधर भी जाती आग लगाती
उसकी फायर ब्रिगेड जैसी हाल है
तरस जाती नयन उसकी
जो देखती उसे पहली बार है

जैसे बागों में फूल हजारों हजार
लेकिन गुलाब की अलग मांग सरकार है
वैसे ही वह
गर्मी से राहत देने वाली मीठी पानी कि बोछार है

जब भी आती यादें उसकी
छा जाती दिल बहार है
क्या देखूं ना देखूं
उसके सिवा न दिखती संसार है

उससे मुझे
बेइंतहा प्यार है
जैसे मेरे लिए
वह पूरा का पूरा संसार है

आवाजें उसकी कोयल जैसी
जैसे बिना की झंकार है
गजब की लगती वह
उसकी अद्भुत रौनक ऐ बहार है

कुछ बोलती तो लगती दिल पर
जैसे दर्द किए पुकार है
पुलकित सी महल कि वह
एक बड़ी सी प्यार है

हां ,मानता हूं मैं
उसपर जान लूटाने वाला हजार है
लेकिन कोई नहीं चाहेगी उसे इतना
जितना मुझको उससे प्यार है

हिरनी जैसी आंखें उसकी ,,,,,,,,

संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar