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हमारा हम
क्या करूं मैं?
खुद को काट लूं वहां से
जहां से ये दुनिया देखना शुरू किया
या खुद को उसी आग में दूं झोंक
जो जल रहे हैं उस आग में
जो ले जाती है उन्हें विनाश की ओर।
मेरे अंदर के व्यक्ति
बात करते हैं अलग अलग
एक कहता है कि
वो नहीं समझ पा रहे यदि
इस उजाले में छुपे अंधेरे को
तो उन्हें उस अंधेरे से
लाओ उजाले की ओर
हॉं थोड़ी सी मुश्किल होगी
सोए हुए को जगाना
दूसरा कहता है कि
पड़े रहने दो उन्हें उसी आग में
खुद को पहले लो देख
उन्हें क्या चाहिए?
सिर्फ भौतिक सुख ही तो!
और क्या ?
उन्हें दे दो वही और पड़े रहने दो वहीं
पर एक कहता है
कहीं मुझे आध्यात्मिक अहं तो नहीं?
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