...

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कहाँ मिलता है सुकूँ

कुल जगत मे ख़ोजता फ़िरता सुकूँ
जी रहा भ्रम मे माया को समझें सुकूँ

उधेड़बुन मे लगा है उधेड़बुन मे खोजें सुकूँ
है जाल माया का समझें ना नही इसमें सुकूँ

जिसे मिला नही "तू " मिले कैसे उसे सुकूँ
अधूरी है बिन "तेरे " ये रुह कहाँ इसे है सुकूँ

उलझा है भ्रम मे बंदा भ्रम को ही माने सुकूँ
समझें ना "तुझ " बिन नासमझ "कहाँ मिलता है सुकूँ "।

© अनिल अरोड़ा "अपूर्व "