...

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राजनीति और आध्यात्मिकता
सदियों से चली आ रही राजनीति,
किसका राज रहा जो लड़े मरे जा रहें हो,
और कैसी नीति है जो तुम चला रहें हों?
अब राजनीति से बाहर रखी जाए,
कोई बात अब वैसी ना रही!
अब हर क्षण हर पल हो रहीं,
मुद्दों की तलाश हैं, की अब
झूठे वादों पर काबू पाना कठिन हैं।
जाने, अंजाने कई यहां राजनीति में लिप्त हैं।
और कई यहां राजनीति से पीड़ित भी।
की अब न कोई परशुराम, न कोई राम,
और नाही कोई बलराम रहा।
धर्म और अधर्म की लड़ाई,
अब नजर कहां आती हैं।
बस चारों ओर, राजनीति ही
राजनीति नजर आती हैं।
- मयूर गोविंद शर्मा
एम.एस वैदिक आध्यात्मिकता
© Mayur Sharma