...

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मैं और मेरी छाया
#दर्पणप्रतिबिंब
जब कभी खो जाती हूं भीड़ में
जब लोग से हो जाती हूं जलील मैं
तब चली आती हूं तुमसे मैं मिलने

मुझे तुम खुद से मिलाती हो
मेरा ही हाल मुझे बतलाती हो
न जाने कितनी समस्याओं का हल बताती हो
मेरे मायूस चेहरे पर मुस्कान लाती हो
मुझे मेरी भूली बिसरी बात याद दिलाती हो
मेरी भूली शक्तियों को फिर से मेरे में समाती हो

मेरे तुम्हारे बीच का ये दर्पण
हमें जोड़े हर पल ,
इसी पल में हम होते हैं एक दुसरे को अर्पण।

© Ankita