...

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ये भरोसा कमबख्त चायनीज़ है

ये भरोसा कमबख्त चायनीज़ लगता मुझे,
एक झटके में जो टूट जाता है,
फिर चाहे करलो कितनी कोशिशें,
दोबारा कहाँ ये जुट पाता है।
फिर देते रहना आजीवन दलीलें,
फोन क्यों हमेशा व्यस्त आता है,
सोशल मीडिया पर एक लाइक से तो,
बरबस शंशय पैदा हो ही जाता है।
फिर बीमारी हो जाती शक की ऐसी,
भला जहाँ में किसी को इलाज भी आता है,
बाहों में हो दिलबर के अपने पर,
पल पल वो दूर ही होता जाता है।
हर पल बस दिलो दिमाग में साथी के,
यही एक डर भरमाता है,
कोई और तो नहीं दिल में उसके,
हर बात में तिल का ताड़ बनाता है।
सलाह यही हर जोड़े से मेरी,
भरोसा दोबारा कभी नहीं बन पाता है,
एक बार जो ये टूट गया तो,
समझो रिश्ता ही बिखर सा जाता है।

© ✍️शैल