...

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जीना सिखाती है जिंदगी
कभी हमे जी भर के हँसाती है.....
तो कभी बेवजह रुलाती है,
कुछ इस तरह जीना सिखाती है जिंदगी,,,,!!

मंजिल तो यह हमे दिखाती है.....
पर रास्तों पर भटकाती है,
कुछ इस तरह सफर कराती है जिंदगी,,,,!!

दर्द तो यह बुरे समय मे बहुत देती है....
फिर दर्द मे खुद ना देख पाती हैं,
कुछ इस तरह मरहम लगाती है जिंदगी,,,,!!

पढ़ाती तो यह कुछ और ही है....
पर परीक्षा मे सवाल कुछ और लाती है,
कुछ इस तरह हमे फ़साती है जिंदगी,,,,!!

सपने यह हमारी आँखों मे सजाती हैं.....
फिर खुद ही उन सपनो से पीछे हटाती है,
कुछ इस तरह पागल बनाती हैं जिंदगी,,,,!!

गलत रास्तों पर यह अक्सर ले जाती हैं....
वहाँ पहुँचाने से पहले सही राह भी दिखाती है,
कुछ इस तरह हमे बचाती है जिंदगी,,,,!!

डर से यह हमारा सामना कराती है....
फिर खुद ही निर्डर बनाती है,
कुछ इस तरह होंसला बढ़ाती है जिंदगी,,,,!!

अपनो से यह हमे मिलवाती है....
फिर उन्हीं अपनो को कोसों दूर ले जाती हैं,
कुछ इस तरह अकेलापन दिखाती हैं जिंदगी,,,,!!

पहले झूठ से यह हमे फंसाती है....
फिर सच का आईना भी खुद ही दिखाती हैं,
कुछ इस तरह पर्दा हटाती है जिंदगी,,,,,!!

मुश्किल से मुश्किल मंज़र से मिलवाती है.....
उसके साथ हमे लड़ना सिखाती है,
कुछ इस तरह चलना सिखाती है जिंदगी,,,,!!

पहले यह हमे प्यार के चक्कर में उलझाती है....
फिर उसी प्यार से धोख़ा दिलवाती है,
कुछ इस तरह दग़ा कर जाती है जिंदगी,,,,,!!

पत्थर बिछाकर रास्तों मे हमे गिराती है....
फिर खुद ही यह हमे उठाती है,
कुछ इस तरह कामयाब बनाती है जिंदगी,,,,!!

पहले समय बर्बाद करने से रोक ना पाती हैं....
फिर पछतावे से समय की अहमियत समझाती है,
कुछ इस तरह सबक सिखाती हैं जिंदगी,,,,!!

बचपन में कली की तरह खिल जाती हैं.....
बुढ़ापे तक पतझड़ की तरह झड़ जाती है,
कुछ इस तरह मिट्टी में मिल जाती हैं जिंदगी,,,,,!!

समझ सको तो समझ लो आखिर.....
यह कहना क्या चाहती है,
क्योंकि अच्छे बुरे पढ़ाव के साथ ही "
हमे रहना सिखाती है जिंदगी,,,,,!!