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प्रतीक्षा
#प्रतिक्षा
स्थिर तन चंचल मन,
अडिग प्रतिक्षा की लगन;
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग,
तुम्हें पुकारता ठीक उसी ढंग,
हृदय का व्याकुल स्पंदन।
करती रजनी प्रतीक्षा जिस ढंग,
पाने को रवि की प्रथम किरण।
जैसे पापीहे की अडिग लगन,
पाने की मेह की जलकण।
जैसे बागवान के आशापूर्ण लोचन,
कि कब खिल उठे मोहक उपवन।
पिया! ठीक इन्हीं अद्भुत ढंग,
निहारते बाट तुम्हारी चंचल लोचन।
स्वीकार करो ना यह अद्भुत प्रेम पूजन,
दे अधिकार प्रेम का करो मुझे तुम धन्य।
जाने तुम आओगे किस क्षण?
होगा जब इन प्रतिक्षाओं का अंत।
– सृष्टि स्नेही
© All Rights Reserved
स्थिर तन चंचल मन,
अडिग प्रतिक्षा की लगन;
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग,
तुम्हें पुकारता ठीक उसी ढंग,
हृदय का व्याकुल स्पंदन।
करती रजनी प्रतीक्षा जिस ढंग,
पाने को रवि की प्रथम किरण।
जैसे पापीहे की अडिग लगन,
पाने की मेह की जलकण।
जैसे बागवान के आशापूर्ण लोचन,
कि कब खिल उठे मोहक उपवन।
पिया! ठीक इन्हीं अद्भुत ढंग,
निहारते बाट तुम्हारी चंचल लोचन।
स्वीकार करो ना यह अद्भुत प्रेम पूजन,
दे अधिकार प्रेम का करो मुझे तुम धन्य।
जाने तुम आओगे किस क्षण?
होगा जब इन प्रतिक्षाओं का अंत।
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