...

3 views

दामन के दाग़ यूं ही नहीं चीखते............✍🏻
ये दाग़ तमाम ज़ख़्मों के राज़ कह रहा है
ख़ामोशी से दामन का मिज़ाज कह रहा है
बेबुनियाद दामन के दाग़ यूं ही नहीं चीखते
मुझे ही क्यों गुनेहगार ये समाज कह रहा है

अक्सर लोग निकल जाते है दाग़ लगा कर
दाग़ का हिसाब-किताब सब कुछ कह रहा है
इल्ज़ामों के दाग़ से दामन कुछ इस तरह रंगा
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा लोक-लाज कह रहा है

क्यों लोग वक़्त की तरह बे-वक़्त ही बदल गए
दामन पे दाग़ के छींटों का क्या रिवाज कह रहा है
इसके उसके लहज़े का ज़िक्र आज कुछ और ही
ख़ामोशी से बहते हुए अश्कों का राज़ कह रहा है

ये दाग़ तमाम हसरतों की इक इक गवाही दें गया
यूं ही नहीं कश्मकश का ये काम-काज कह रहा है
हर एक ख़बर का ज़िक्र लबों पे ठहरा हुआ है यहां
सुना है आज कल चेहरे का कुछ मिज़ाज कह रहा है

चारों तरफ बस ज़हरीले सवालों की इक चिंगारी है
ना जाने ये किसका झूठा तख़्त-ओ-ताज कह रहा है
सुना है ज़रा सी बग़ावत ने मुझे दाग़ दाग़ कर दिया
ये दामन पे दाग़ तमाम ज़ख़्मों का राज़ कह रहा है

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes