...

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वो सब इत्तेफाक सा था.....
तुमसे मिलना इत्तेफाक सा था,
जो कहना था इक ख़्वाब था,
जो दिल में था इक राज़ था,
मेरे गीतों में तुम्हारा साज़ था,
मौसम बड़ा खास था,
मेरा दिल तुम्हारे पास था,
मेरा यार मेरे साथ था,
हाथों में हाथ था,
मैं सिर्फ़ उसी की हुं, कहाँ कह पाता था,
कभी मुझसे रूठ जाता था,
कभी मुझे मनाता था,
वो मेरे बिन बोले सब समझ जाता था,
वो सब कुछ इरादों से जताता था,
वो उसके इशारों से सताता था,
वो सबकी दुआएँ कमाता था,
सबका कहा मानता था,
मेरे दिल का हाल, बिन बोले जान जाता था,
मेरा चेहरा पहचान लेता था,
पर तुम्हारा कुछ और ही इरादा था,
वो इश्क़ सिर्फ़ आधा था,
न और कुछ ज़्यादा था,
वो अधूरा इक वादा था,
तुमसे मिलना इत्तेफाक सा था.............

© Kashish Chandnani