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"बीते दो हसीन पल "

आखों में एक सपना था, कुछ आशाएं बनी थी, कुछ उम्मीदें कायम हुई थी, महफिलें सजाई गयी, तन्हाई में हमको रोना भी आया था, दोस्तों ने यारी सिखाई, और लोगों ने जिंदगी जीना, कुछ लोगों ने दुनिया का रंग दिखाया, तो कुछ लोगों ने अपना,
वो भी एक ऐसा दोर आया था जब हमने दिल भी लगाया, ओर दिल हारा भी।
यूं तो वो पल सुनहरे भी थे, चुकीं बात तो बनारस की यादों की है, नाम ही बहुत है जिंदगी का हर लम्हा यहां प्यारा सा है, तो मेरे प्यारे दोस्तो ये दो पल उन दिनों के है जब हम पहली बार घर से दूर बाहरी दुनिया देखने और लाइफ को जीने निकले थे।
कुछ यादें यहां ऐसी बनी जो भूल कर भी भुलाए नहीं जा सकती, और कुछ बातें भूल जायें तो ही बेहतर है। मेरे सभी प्यारे साथियों क्या मैं बयां करूं बनारस की यादों का, वहा बीते दिनों का, गंगा के घाटों का, वहा के जीवन का, बनारस की शाम, वहा के मित्रों के साथ का, उन गलियों से हुए प्यार का, कैसे मैं बयां करूं? क्या मैं बताऊँ, क्या मैं बोलू? मेरे पास शब्द नहीं मेरी उन यादों के, और जो शब्दों में बयां हो जायें ऐसी मेरी हसीन यादें नहीं।

यूँ ही नहीं कहते है - मोका मिला है तो जी लो, फिर ये समा हो ना हो, कल का इंतजार मत कर किसने देखा कल हो ना हो, कल अगर होगा भी तो कल हम हो ना हो।

© by :- kk writer