...

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जज्बात
कितने किस्से तमाम हो गए
जो खास थे वो आम हो गए

उफ्फ तक भी न की कभी
मुफ्त में ही बदनाम हो गए

लबों में प्यास क्या उमड़ी
खाली सारे, जाम हो गए

कुछ शेर हम कहते मगर
लफ़्ज़ ही गुमनाम हो गए

फूलों की सोहबत क्या की
काँटो से जख्म तमाम हो गये

खरीदे क्या अब बाजार में
गुठलियों के भी दाम हो गए

© साँसे