...

7 views

हाल अजीब है
अजीब हाल है उसका
समाज रूपी इस खाँचे में
जन्म हो गया जिसका
इस खाँचे के नीचे वाले साँचे में
जिसने उसे बचपन में ही बड़ा कर दिया
किशोर जब वह हुआ उसे बूढ़ा कर दिया
ये साँचा इतना कामगर है कि
स्वतंत्रता तुम्हारी जन्म से ही छीन लेता है
और लाद देता है कई बंधनों को
इसमें मनुष्य, मनुष्य नहीं रह जाता
उसे मशीन या पशु बना दिया जाता है
जो चिंतन न कर सके और न ही कर सके प्रेम
अपराध बोध से भरा हुआ वह
ख़ुद को निर्दोष साबित करने में भी हो जाता है फेल
निर्दोष को अपराधी साबित कर
उस पर प्रभुत्व स्थापित करने का हथकंडा
इस व्यवस्था का पुराना है
तुम सही भी हो तब भी गलत दिखाता है
जिससे तुम इसके नियंत्रण में रहकर
ख़ुद की गरिमा अस्मिता खत्म कर
इसके लिए अपना सर्वस्व लुटाते रहो