...

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बिना आवाज़ के
जुबां होतीं है जब-जब खामोश "
तब-तब इस बात को,
मन सह ना पाए...
बिना आवाज के भी देखो,
यह मन कितना हैं शोर मचाए....!!

कभी निकले ना जो कोई "
शब्द मुख से,
आँखों के जरिए यह वो कह जाए....
बोलता है फिर उन शब्दों को "
जिनको जुबां से कभी,
हम बोल ना पाए....!!

कभी अच्छे, कभी बुरे विचारों का "
अंदर ही अंदर,
यह मन जाल बिछाए....
कैद पड़ी है जो ना जाने कब से यादें "
एक दिन बिन बोले ही,
उन यादों की यह बरसात ले आए....!!

दिल में सिमटते हर जज्बातों को "
भीतर ही भीतर,
यह मन तूफान बनाए....
अपना होते हुए भी ना जाने क्यों "
अपना ही यह,
मन दुश्मन बन जाए....!!

नही होता जो हमारे हाथ में "
उस पर ही यह मन,
ना जाने क्यों अटक सा जाए....
होता हैं जो अक्सर "
हमारे ही पास में,
उसको ही हमसे यह दूर ले जाए....!!

© Himanshu Singh