...

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चाँद 🌝
बैठ कर अंधेरों की छाव में,
एक चाँद नजर आया मुझे।
रही निहारती टक - टक उसे;
उसके दृश्यों ने उलझाया मुझे।।

ह्रदय की धधकती आग को,
अपनी शीतलता में डुबो बुझाया उसने।
लौट आयी मुस्कान मेरी ;
उसकी चाँदनी ने चमकाया मुझे।।

कितने अद्भुत स्वप्न थे उसके,
बंद नेत्रों में भी नज़र आया मुझे।।

कितना शीतल, कितना मधुर ;
मानो अमृत ही बरसा रहा।
उस अँधेरी सी निशा में ;
दूर खड़ा मुस्का रहा।।

करोडो सितारों की भीड़ में,
बस वो नज़र आ रहा।।


© श्वेता श्रीवास