...

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खोने का डर
किसी को खोने के डर से...
क्यों इतना घबराए,
मोह है यह कोई चाह नही "
इंसान इस बात को..
क्यों कभी समझ ना पाए,,,,!!

मोह के बंधनों में बंधकर....
क्यों खुद को सताए,
छूटेगा जरूर जीवन के सफर मे "
सभी अपनो का साथ..
क्यों इस सच्चाई से फिर खुदको
हर पल है बचाए,,,!!

अपनो के दूर होने के डर से....
क्यों खुदको डराए,
कभी होकर देख आजाद "
अपनो के इस मोह से...
मन मे बसा यह खोने का डर,
तुझे कभी छू ही ना पाए,,,,!!

अपनी खुशी के लिए हर कोई...
क्यों मतलबी बन जाए,
जीवन के इस सफर में किसी का  "
जरूरत से ज्यादा...
मोह करना भी इंसान को,
शक करना है सिखाए,,,,!!

बेवजह खोने के इस डर से ....
क्यों खुदको इतना डराए,
खो देगा जब एक दिन "
उस अपने को...
जीवन में आगे बढ़ जाने पर,
वह अपना भी बस याद बन जाए,,,,!!

अगर है जीवन का कुछ लक्ष्य फिर...
क्यों डर आकर तड़पाए,
नही है जिनके पास कोई मंजिल "
उस तक पहुँचने का रास्ता...
फिर कैसे मिल पाए,
खोने का डर तो उन्हे ही सताए "
अपने से ज्यादा,
जो अपनो पर ध्यान लगाए,,,,!!