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बढ़ा क़दम मंज़िल की ओर
बढ़ा क़दम मंज़िल की ओर,
डरता क्यों है नाकामयाबी से,
बदल जाएगा लेखा तक़दीर का,
तबियत से तदवीर आज़मा ज़रा,
बेशक़ कोई न दे साथ तेरा,
नज़र आए हर रास्ता धुँधला,
पर छोड़ना नहीं तू राह अपनी,
थामे रहना दामन उम्मीदों का,
© feelmyrhymes {@S}
डरता क्यों है नाकामयाबी से,
बदल जाएगा लेखा तक़दीर का,
तबियत से तदवीर आज़मा ज़रा,
बेशक़ कोई न दे साथ तेरा,
नज़र आए हर रास्ता धुँधला,
पर छोड़ना नहीं तू राह अपनी,
थामे रहना दामन उम्मीदों का,
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