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ताक़ीद
ताक़ीद

क्यों हर शख्स उलझनो में उलझने की कोशिश करता है,
एक नाबीना सिर्फ और सिर्फ रौशनी की तलाश करता है।

क्यों मायूस है और क्यों इतना परेशान सा दिखता है,
तवक्कुल उस खुदा पे कर जो तीनो जहाँ का मालिक है।

तुझे इतना दिया मालिक ने गुमान न कर अपने आप पर,
देख तेरे पड़ोस में, कोई एक निवाले को भी तरसता है।

ख़ुदावन्द खुदा की आँखे, हर गुनहगार ममलुकात पर लगी रहती है,
कर अपने ईमान को पुख्ता, मौका वो अब भी तुझको देता है।

ऊंची आँखे, झूठी ज़ुबान ना किसी का खून बहाना ऐ "रवि"
बुरे मंसूबें बाँधने वाला, तेरे पीछे साये की तरह चलता है।

राकेश जैकब "रवि"